जब मैंने पत्नी के बारे में सोंचा
तो मेरी माँ याद आई
असीम स्नेह और अपरमित दुलार युक्त
चेहरे के साथ
मैं जिज्ञासु हो उठा !
मैंने अपनी बेटी को याद किया
बरबस मेरी आंखों के सामने थे
मेरी बहनों के मुख
नटखट शैतान और हठीले
परन्तु परवाह से भरे
मैं अवाक था...!!
मैंने ख़ुद के विषय में सोचा
मैंने महसूस किया मजबूत कंधों ,
चौड़ी छाती
और विशाल बाजुओं को
जो तत्पर थे मेरा कहना मानने के लिए
ये मेरे भाई है
मेरा मन गदगद हो उठा !!
मैंने सोचा पुत्र क्या है
जो अपनी ही धुन में रहता है
धौंस जमता और रोब झाड़ता है हर समय
मेरे सम्मुख था मेरे पिता का सम्पूर्ण वांग्मय
वे ना जाने कहाँ व्यस्त रहते
परन्तु आवश्यकता पड़ने पर रेगिस्तान से भी जल खींच लाते।
मैं और भी आशान्वित हो गया।
- योगेन्द्र पाण्डेय