मैं बनना चाहता हूँ
कांच की गोलियाँ
रंगीन खिलौने
छोटे-छोटे धनुष और तीर
शकर के गोले
प्यारी फिरकियाँ और मूर्तियां मिट्टी की
मीठी टॉफियाँ और कम्पट
और मैं बनना चाहूँगा
पेड़ों पर लदे फल,महकते फूल
और वह सब जो बच्चों को देता है खुशी
मैं चाहूँगा नन्हें हाथों से
दुलराया और सहलाया जाना
और जी भर जाने पर
उन्हीं हाथों से तोड़ कर फेंक दिया जाना
कुछ पलों की खुशी जो मैं
दे जाऊँगा बच्चों को
मेरे होने को सार्थक कर देगी
यही भवना कि
बच्चे भगवान् का रूप होते है
मुझे मुक्त कर देगी
मुझे मुक्त कर देगी
3 comments:
sach me bachcho ke prati apki bhawnaye bachcho ki tarah hi nirdosh si..bahut sundar
sach me bachcho ke prati apki bhawnaye bachcho ki tarah hi nirdosh si..bahut sundar
धन्यवाद हरप्रीत जी
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