Tuesday, June 15, 2010

कितना कठिन है

कठिन  है, कितना कठिन है !!
मौन में  अनवरत जीना,
कठिन  है कितना कठिन है
निरंतर जागते रहना
है कठिनतम
रिक्तता की गुरु शिला के तले दब कर ,
साँस को भी चूंस कर पीना
दिये की निष्कंप बाती सा निरंतर
स्वयं के धुएं  में घुटकर
शून्य में ही  सुलगते रहना |
कठिन  है, कितना कठिन है !!
शून्य के उस पयोधर तक पहुँच  पाना
और उस से सत्य की चिन्मयी रस धारा बहा देना
दूर हिम नद में छिपी ज्यों एक सलिला
और उसकी गर्भ- जल-धारा
एक  भगीरथ की तपस्या सा कठिन है
उसको धरा पर प्राण दे पाना |
वह जो अंतर की अँधेरी गुहा में
जागता रहता सदा अविकल प्रतीक्षा में
कौन है वह ....
एक हीरा तोड़ने जितना कठिन है
उस सदा गति मय उपस्थिति को
कोई अर्थ दे पाना
कोई नाम दे पाना ...

आयी किरण पाती पिया की








आयी किरण पाती पिया की,
बज उठी सांकल हिया की |


भावना ने पंख तोले
दृष्टि ने उठ द्वार खोले,
सामने देखी क्षितिज पर,
लाल पगड़ी डाकिया की |

बिछौने के शूल सारे,
खिल उठे बन फूल सारे,
रात भर की थकी हरी,
सो गयी बाती दिया की |

आस ने आँगन बुहारा
आस्था बोली दुबारा


मैं न कहती थी वो एक दिन
पीर बूझेंगे जिया की
























Friday, June 11, 2010

तुम्हारी याद





तुम्हारी याद 
दिव्य जागरण के शीतल द्वार में
प्रवेश की तरह है   ,
जैसे  ओस की बूंद फिसली हो पंखुरी  पर 
और सिहर उठा हो पुष्प 
ठीक उसी सिहरन की तरह है 
तुम्हारी याद का आना 
तुम्हारा स्मरण 
मेरे अचेतन की बांसुरी है 
और उसकी धुन 
मेरे रोम रोम में गूंजता राग भैरवी है 
मै जानता हूँ 
तुम्हारी याद एक क्रांति है 
ठीक उस छुवन की तरह 
जिसका अर्थ है पीड़ा दर पीड़ा 
पर मुझे मंजूर है
इसी तरह जीना 
और शायद  इसी तरह जीवन भर ...