माँ कितनी सरल है,
माँ कितनी तरल है,
माँ के जितना सहना,
फिर भी कुछ ना कहना,
माँ के विषय में उतना ही,
कठिन है कुछ कहना ।
माँ जीवन है अभिमान है,
माँ मानवता का स्वाभिमान है।
माँ जीवन का राग और ताल है,
माँ मेरे झूँठों की मजबूत ढाल है।
माँ जीवन की साज और सज्जा है,
माँ रक्त है प्राण है अस्थि मज्जा है।
माँ स्नेह की सरिता और प्रेम की मूर्ति है,
माँ निःशर्त निःस्वार्थ लालित्य की पूर्ति है।
माँ सृष्टि है सत्य की नियामक है ,
माँ की शक्ति सारे जहाँ में व्यापक है।
माँ ममत्व की एकमात्र प्रखर प्रवक्ता है ,
माँ मेरे बचपन की कुशल अधिवक्ता है।
माँ गलतियों का नितांत माफ़ी नामा है,
माँ अनंत प्रेम का अनवरत हलफनामा है।
माँ अपनेपन की अनोखी हिरासत है,
माँ जीवन की सबसे बड़ी विरासत है।
माँ पृथ्वी से बड़ी है -सुना है,
माँ की गोद कितनी बढ़ी है -गुना है।
हम कुछ भी हो जाये,
चाहें हम बहुत बड़े हो जाएँ,
हम जीवित ही भगवान हो जाएँ,
लेकिन...
माँ के आगे सब बौने है,
दुधमुहे छौने हैं।
माँ है तो क्या गम है,
माँ है तो हम है
नहीं तो बहुत कम हैं।
- योगेन्द्र पाण्डेय
शिक्षक एवं प्रशिक्षक
553/3
विजय लक्ष्मी नगर
सीतापुर