Friday, June 11, 2010

तुम्हारी याद





तुम्हारी याद 
दिव्य जागरण के शीतल द्वार में
प्रवेश की तरह है   ,
जैसे  ओस की बूंद फिसली हो पंखुरी  पर 
और सिहर उठा हो पुष्प 
ठीक उसी सिहरन की तरह है 
तुम्हारी याद का आना 
तुम्हारा स्मरण 
मेरे अचेतन की बांसुरी है 
और उसकी धुन 
मेरे रोम रोम में गूंजता राग भैरवी है 
मै जानता हूँ 
तुम्हारी याद एक क्रांति है 
ठीक उस छुवन की तरह 
जिसका अर्थ है पीड़ा दर पीड़ा 
पर मुझे मंजूर है
इसी तरह जीना 
और शायद  इसी तरह जीवन भर ...

7 comments:

अरुण 'मिसिर' said...

सुंदर, दिव्य, मनोहारी
भाव,
भव्य प्रस्तुतीकरण

अरुणेश मिश्र said...

भावप्रवण रचना । याद मे ऐसी ही संवेदनाएं जन्म लेतीं हैं ।

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

"जैसे ओस की बूंद फिसली हो पंखुरी पर और सिहर उठा हो पुष्प ठीक उसी सिहरन की तरह है तुम्हारी याद का आना तुम्हारा"
योगेन्द्र जी ! आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं .......परिष्कृत लेखन के लिए साधुवाद ...पर एक शिकायत है .......सिर्फ तीन कवितायें ???.......लिखना बंद कर दिया क्या ? ....नदी का प्रवाह रुकता है कहीं ? बहने दीजिये ! अब जब कदम आगे बढ़ा ही दिया है तो धैर्य के साथ आगे बढ़ें ..........मेरी शुभकामनाएं .......
शेष फिर पढूंगा ...समय मिलने पर ......मैं बिलहारी और लखपेडा में रह चुका हूँ कुछ दिन.

Unknown said...

kitni bhavpurn krati hai. apne sach me jo mehsoos kiya wahi shabd me utar diya .bahut hi manohari

Unknown said...
This comment has been removed by the author.
वीथिका said...

जी हरप्रीत जी
बहुत आभार इस मान बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए

वीथिका said...

जी हरप्रीत जी
बहुत आभार इस मान बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए