तुम्हारी याद
दिव्य जागरण के शीतल द्वार में
प्रवेश की तरह है ,
जैसे ओस की बूंद फिसली हो पंखुरी पर
और सिहर उठा हो पुष्प
ठीक उसी सिहरन की तरह है
तुम्हारी याद का आना
तुम्हारा स्मरण
मेरे अचेतन की बांसुरी है
और उसकी धुन
मेरे रोम रोम में गूंजता राग भैरवी है
मै जानता हूँ
तुम्हारी याद एक क्रांति है
ठीक उस छुवन की तरह
जिसका अर्थ है पीड़ा दर पीड़ा
पर मुझे मंजूर है
इसी तरह जीना
और शायद इसी तरह जीवन भर ...
7 comments:
सुंदर, दिव्य, मनोहारी
भाव,
भव्य प्रस्तुतीकरण
भावप्रवण रचना । याद मे ऐसी ही संवेदनाएं जन्म लेतीं हैं ।
"जैसे ओस की बूंद फिसली हो पंखुरी पर और सिहर उठा हो पुष्प ठीक उसी सिहरन की तरह है तुम्हारी याद का आना तुम्हारा"
योगेन्द्र जी ! आप बहुत अच्छा लिख रहे हैं .......परिष्कृत लेखन के लिए साधुवाद ...पर एक शिकायत है .......सिर्फ तीन कवितायें ???.......लिखना बंद कर दिया क्या ? ....नदी का प्रवाह रुकता है कहीं ? बहने दीजिये ! अब जब कदम आगे बढ़ा ही दिया है तो धैर्य के साथ आगे बढ़ें ..........मेरी शुभकामनाएं .......
शेष फिर पढूंगा ...समय मिलने पर ......मैं बिलहारी और लखपेडा में रह चुका हूँ कुछ दिन.
kitni bhavpurn krati hai. apne sach me jo mehsoos kiya wahi shabd me utar diya .bahut hi manohari
जी हरप्रीत जी
बहुत आभार इस मान बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए
जी हरप्रीत जी
बहुत आभार इस मान बढ़ाने वाली टिप्पणी के लिए
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