Friday, July 24, 2015

ज़िन्दगी


जिन्दगी स्वर्ग है
जो प्रेम में निबद्ध है
जिन्दगी नर्क है
जो प्रतिशोध से सम्बद्ध है।
जिन्दगी एहसास है
जो रूमानी हुआ
जिंदगी व्याख्या है
जो कहानी हुआ ।
जिन्दगी ठहर गयी
जो झील हुआ
जिन्दगी चल पड़ी
जो मील हुआ ।
सतत परिवर्तन है
जिंदगी नर्तन है ।
जिन्दगी थक गयी
जिसने हार मान ली
जिन्दगी जिन्दा है
जिसने रार ठान ली।
जिन्दगी झरना है
जिसने बहना सीखा
जिन्दगी पड़ाव  है
जिसने ठहरना सीखा ।
जिन्दगी दर्शन है
जो द्रष्टा है
जिन्दगी ब्रह्म है
जो स्रष्टा है ।
जिन्दगी होश है
जो जागा
जिन्दगी जोश है
जो भागा ।
जिन्दगी सबकुछ है
जिन्दगी सतरंगी है
लाल हरी नीली पीली
कुछ कुछ नारंगी है ।
ना कुछ में सबकुछ
अपना ये जीवन है
छोडो सब बातें
ये आल इन वन है ।
*************
                  - योगेन्द्र
                       1:56 AM

4 comments:

Unknown said...

atyant hi sahajta se purn jeevan ki sargarbhit paribhasha....

वीथिका said...

शुक्रिया हरप्रीत जी
ब्लॉग पर समय देने के लिए

वीथिका said...

शुक्रिया हरप्रीत जी
ब्लॉग पर समय देने के लिए

वीथिका said...

बहुत बहुत आभार