Tuesday, June 15, 2010

कितना कठिन है

कठिन  है, कितना कठिन है !!
मौन में  अनवरत जीना,
कठिन  है कितना कठिन है
निरंतर जागते रहना
है कठिनतम
रिक्तता की गुरु शिला के तले दब कर ,
साँस को भी चूंस कर पीना
दिये की निष्कंप बाती सा निरंतर
स्वयं के धुएं  में घुटकर
शून्य में ही  सुलगते रहना |
कठिन  है, कितना कठिन है !!
शून्य के उस पयोधर तक पहुँच  पाना
और उस से सत्य की चिन्मयी रस धारा बहा देना
दूर हिम नद में छिपी ज्यों एक सलिला
और उसकी गर्भ- जल-धारा
एक  भगीरथ की तपस्या सा कठिन है
उसको धरा पर प्राण दे पाना |
वह जो अंतर की अँधेरी गुहा में
जागता रहता सदा अविकल प्रतीक्षा में
कौन है वह ....
एक हीरा तोड़ने जितना कठिन है
उस सदा गति मय उपस्थिति को
कोई अर्थ दे पाना
कोई नाम दे पाना ...

8 comments:

satya said...

Kyaa baat hai .

Waah !!!!

Parul kanani said...

bahut badhiya!

अरुण अवध said...

सच में ,कितना कठिन है ,
लेकिन--
अब अभिव्यक्ति के खतरे उठाने ही होंगे,
तोड़ने होंगे किले और दुर्ग सब ...........

बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरना said...

वह जो अंतर की अँधेरी गुहा में
जागता रहता सदा अविकल प्रतीक्षा में

गहरी अभिव्यक्ति। अति सुन्दर।

Unknown said...

katintam ki sarltam abhiyakti apke vyaktitva ke anuroop..

Unknown said...

katintam ki sarltam abhiyakti apke vyaktitva ke anuroop..

Unknown said...

katintam ki sarltam abhiyakti apke vyaktitva ke anuroop..

वीथिका said...

Thanks harpreet ji